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हे मन विहग बस तू उड़ान भर
घोर अंधकार हो
शांत ये बयार हो
तू अकेला राह में
मंजिल की चाह में
धैर्य तू छोड़ना
लक्ष्य से मुह मोड़ ना
मुसीबतें हज़ार हो
बैरी सब संसार हो
बहेलिया हो हर पग पे
कोई न हो तेरा जग में
फिर भी हे मन विहग बस तू उड़ान भर !
बस तू उड़ान भर !
तो क्या हुआ जो पंख तेरे कट गए
मित्र तेरे घट गए
जो घोंसला न रहा तो क्या
हौसला तू छोड़ ना
तिनके अब भी हैं जहान में
बना ले तू नया बसेरा
दूर होगा यह अँधेरा
आएगा फिर नया सवेरा
लगन लगा उड़ान में
हे मन विहग बस तू उड़ान भर !
बस तू उड़ान भर !
अनुकूलता में बढ़ते हैं सब
ऊंचाइयों पे चढ़ते है सब
तू जग की रीत बदल
विपरीतियों में भी बढ़ता चल
सत्य का उठा हथियार
और असत्य का मिटा निशान
भास्कर को लक्ष्य कर
बस तू उड़ान भर
बस तू उड़ान भर |
(रवि प्रताप सिंह )