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4 years ago

हे मन विहग बस तू उड़ान भर !

हे मन विहग बस तू उड़ान भर !

Picture credit:  dreamstime.com

हे मन विहग बस तू उड़ान भर

घोर अंधकार हो

शांत ये बयार हो

तू अकेला राह में

मंजिल की चाह में

धैर्य तू छोड़ना

लक्ष्य से मुह मोड़ ना

मुसीबतें हज़ार हो

बैरी सब संसार हो

बहेलिया हो हर पग पे

कोई न हो तेरा जग में

फिर भी हे मन विहग बस तू उड़ान भर !

बस तू उड़ान भर !

 तो क्या हुआ जो पंख  तेरे कट गए

मित्र तेरे घट गए

जो घोंसला न रहा तो क्या

हौसला तू छोड़ ना

तिनके अब भी हैं जहान में

बना ले तू नया बसेरा

दूर होगा यह अँधेरा

आएगा फिर नया सवेरा

लगन लगा उड़ान में

हे मन विहग बस तू उड़ान भर !

बस तू उड़ान भर !

 अनुकूलता में बढ़ते हैं सब

ऊंचाइयों पे चढ़ते है सब

तू जग की रीत बदल

विपरीतियों में भी बढ़ता चल

सत्य का उठा हथियार

और असत्य का मिटा निशान

भास्कर को लक्ष्य कर

बस तू उड़ान भर

बस तू उड़ान भर |

 (रवि प्रताप सिंह )


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