Picture Credit: Alisha Ansari
चाय कब महज एक चाय हुई है
जब उबलते पानी में पत्ती घुली है
तब न जाने कितनी ही यादों से मिली है
जो रंग उतरा है इसका गरम पानी में
जैसे खुदा का नूर उतर आया है मासूम जवानी में
जब अदरक कूटकर डाला है तीन चार उबाल के बाद
खुश्क गलों की महफ़िलें बिन पिए ही हो गई हैं आबाद
चाय कब महज एक चाय हुई है
इसीके साथ किसी कि सुबह तो किसी कि शाम हुई है
इलायची की गिरियाँ जो मिली हैं जाकर
हर आमों ख़ास की अरदास हुई है
जब शक्कर के दानों को अपने आगोश में लेती है
जमाने भर की कडवाहट को काफूर यह कर देती है
चाय कब महज एक चाय हुई है
चाय पर तो न जाने कितने मसाइल हुए हैं
गिरा है दूध का कतरा जो इसकी स्याह सी रंगत पर
अमावास में यूँ लगा कि पूनम की रात हुई है
जब आई है यह प्याले में छन्नी से गुजरने के बाद
लगा कि बाबुल की बेटी अब ससुराल की हुई है
चाय कब महज एक चाय हुई है
लबों से जिसने भी लगाया
वो कहीं खो सा गया है
किसी को यार , किसी को दोस्त, किसी को प्यार , किसी अपने से तकरार बहुत याद आया है
चाय कब महज एक चाय हुई है
चाय पर मुलाकातें ,बातें ,समझौते , जीवन भर के नाते
क्या क्या नहीं हुए हैं
चाय कब महज एक चाय हुई है
चलो आज फिर चाय बनाते हैं
किसी अपने को बुलाते हैं
बैठ कर गप्पियातें हैं
और कोई न मिले तो किसी गैर को आवाज लगाते हैं
और उसे इसी चाय के बहाने अपना बनाते हैं
चाय कब महज एक चाय हुई है
चाय कब महज एक चाय हुई है
चलो सभी फासले इसी चाय से मिटाते हैं
जो दूध की न पिए तो ब्लैक टी पिलाते हैं
जो ब्लैक टी न पिए तो उसे ग्रीन टी पिलाते हैं
जो ग्रीन टी भी न पिए तो उसे लेमन ग्रास टी पिलाते हैं
चलों सभी बिछड़ों , उखड़ों , रूठों को चाय पर बुलाते हैं
और मैं तो कहता हूँ कि हर सरहद पर एक चाय का टप्पर खुलवाते हैं
और सारी दुश्मनी , उल्फत, शिकायतें दर किनार कर चाय पीते और पिलाते हैं
चाय की चुस्कियों के साथ खुशनुमा माहौल बनाते हैं
क्यूंकि
चाय कब महज एक चाय हुई है
चाय से हमारी सुबह तो उनकी शाम हुयी है ||
रवि प्रताप सिंह