i find it so ironic that after a year, you contacted me first. it was something so insignificant, just a video from our past. and yet here i was antagonising having to be the first one to reach out between us. and no, we’re not fighting, we never were—but in my head, when i decided to ghost you last year, i knew i was better off than to keep hoping for something i wasn’t even sure i want. i did it for me and i never regretted it even though sometimes i’d wonder if you wish you did more than this, try more than me.
— anyways it doesn’t matter now that a year has gone by. without you, i let myself grow into someone better. i’ve found many people who are better, and i’m more sure now than ever that i deserve someone better. thank you for reaching out to me first, even if it was over something so insignificant, i guess it won’t hurt to send you a message in reply after all.
marina grace
ख़ामोशी
निशब्द मानव ध्वनि रहित
अलग अलग जगह
अपने अर्थों के साथ सर्वत्र विद्यमान है
ख़ामोशी !
जैसे ही मैं धरती पर आया
मैं खामोश रहा
तब माँ का दिल घबराया
मुझे हिलाया डूलाया मेरी पीठ को सहलाया
और तो और मुझे चुटकी भी काटी
और तब मैं अपने पूरे आवेग से अपनी पहली क्रंदन ध्वनि निकाल पाया
कुछ महीने बाद
मेरी उसी क्रंदन ध्वनि से व्याकुल होती मेरी माँ
परेशान रहती तब तक जब तक की मैं खामोश नहीं हो जाता
मेरे जन्म के कुछ महीने में ही मेरी ख़ामोशी के दो अलग अलग मतलब
ढूंढ लिए थे दुनिया वालों ने ,
कुछ एक साल बाद मुझे विद्यालय नमक संस्था में भेजा गया
वहां मुझसे अपेक्षा की गई कि
मेरी आवाज और ख़ामोशी किसी और के अधीन रहेगी
वहां पूरे जोर शोर से सबसे पहले मुझे शांत रहना सिखाने की साजिश की गई
मैं तभी बोलता या खामोश रहता
जब वो मुझे कहता या कहती,
एकदम मशीनी काम
लड़कपन में अपनी बंदिशे तोड़ दी मैंने
मुखर हो रहा था
पास पड़ोस के लोगो ने कहा
बहुत बोलता है
अपने से बड़ो को जवाब देता है
बिगड़ रहा है लड़का चिंता का विषय था
जितने भी लोग मुझसे बड़े थे और बड़े होने में उनका कोई भी योगदान नहीं था
सबने अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करके मुझे शांत करने की कोशिश की
और काफी हद तक इस दमनात्मक कार्यवाही में सफल रहे
कुछ असहज सा अनुभव
पैदा कर देता हलचल
मन हो जाता व्याकुल
पर अब तक वाणी ने शब्दों का साथ छोड़ दिया था
और मन की बातों को कलम के सहारे कोरे कागज की तरफ मोड़ दिया था
अब मैं खुद से बातें करता
खामोश रह कर खूब शोर करता
और उसी शोर को कागज पर कलम के सहारे उतार देता
इसी तरह के माहौल से होता हुआ मैं युवा हुआ (और ज्यादातर ऐसे ही होते हैं)
पहले मुझे आश्चर्य होता था की
क्यों कुछ गलत होने पर लोग आवाज नहीं उठाते
फिर धीरे धीरे समझ आया कि आवाज उठाने की सजा तो यह बचपन से ही खाते आयें है
फिर कैसे कोई आवाज उठेगी
लेकिन जिन्दा कौमे सवाल पूंछती है
जागरूक समाज आवाज उठाता है
परन्तु हाय रे इस देश का दुर्भाग्य
यहाँ तो आवाज नीचे रखने और खामोश रहने की अफीम तो बचपन से ही दी जाती है
इसलिए इस सोये हुए समाज में मौत का सन्नाटा है
आओ आगे बढ़ो!
आवाज लगाओ
सवाल उठाओ
जिद करो जवाब पाने की
और अगली पीढ़ी को तैयार करो
सिंह गर्जना के लिए
स्वतंत्र चिंतन के लिए
तभी इस देश का स्वर्णिम समय आएगा
तोड़ो इस सन्नाटे को
छोड़ो इस ख़ामोशी को
क्योंकि एक दिन खुद ही हमेशा के लिए खामोश हो जाएगी
मेरी और तुम्हारी आवाजें
तो उस कयामत के दिन से पहले
कुछ ऐसा करें की हमारी आवाजें
हमारे जाने के बाद भी
तोडती रहें निशब्द मानव ध्वनि रहित
ख़ामोशी ! ख़ामोशी ! ख़ामोशी!
(रवि प्रताप सिंह )